ठेले वालों, फेरी वालों एवं फुटपाथ पर दुकान लगाकर काम करने वालों को ऋण उपलब्ध कराने की योजना का कोई फायदा नहीं
राजस्थान सरकार द्वारा वाहवाही लेने के लिए पंजीकृत ठेला, पटरी वालो की सहायतार्थ इंदिरा गांधी शहरी क्रेडिट कार्ड योजना तो चालू कर दी गई, लेकिन योजना के अंतर्गत जरूरतमंदों को ऋण तो मिल ही नहीं रहा है। इसका मुख्य कारण नगर परिषद और बैंकों की ढिलाई और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा इस पर नियंत्रण नहीं होना है। नगर निकाय एवं प्रशासनिक अधिकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में कोई रुचि नहीं ले रहे हैं।
करौली जिले में इस योजना के अंतर्गत लगभग 6000 लोगों ने ऋण के लिए आवेदन किया इसमें से मैच 750 लोगों को ही बैंक की ओर से ऋण स्वीकृत किया गया है और बाकी मामले लंबित चल रहे हैं।
जरूरतमंदों को ऋण के लिए भटकना पड़ रहा है। आवेदनों के मामले में नगर निकायों ने अपने लक्ष्य पूरे कर लिए और जिले को राजस्थान में तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया, लेकिन अगर उनको ऋण ही नहीं मिला तो उसकी खानापूर्ति लक्ष्यों की रहेगी, इसकी योजना के तहत राजस्थान के स्थाई निवासी को जिसकी कुल आय ₹15000 तक तथा मासिक आय परिवार की रु 50,000 तक हो वह यह ऋण प्राप्त हो सकता है।
इसके अंतर्गत ऋण के पाने वाले को बेरोजगारी भत्ता नहीं मिलना चाहिए और उसका पंजीकरण जिला रोजगार केंद्र में होना चाहिए। इसमें स्ट्रीट वेंडर्स को जिसके पास वेंडर्स का प्रमाणपत्र हो को यह ऋण दिया जाता है और नगर निकाय की ओर से सिफारिश पत्र तथा जिला कलेक्टर की ओर से चयनित व्यवसायों के लोगों को इसमें ऋण दिया जाता है।
नगर निकायों के पार्षद भी गरीबों के इस काम में कोई रुचि नहीं ले रहे हैं और यह नागरिक पार्षदों के यहां तथा नगर परिषद कर्मचारियों के यहां चक्कर लगा रहे हैं।
ठेला लगाने वाली किरण देवी और मीना देवी का कहना है कि उनके पास स्ट्रीट वेंडर पंजीकरण व रजिस्ट्रेशन कार्ड है लेकिन उन्हें अभी तक कोई फायदा नहीं मिला है। मीना देवी का यह भी कहना था कि बहुत सारे ठेले वाले और पटरी वाले करौली में अपना व्यवसाय करते हैं और यहीं रहते हैं लेकिन उनके पास यहां के आधार कार्ड और जन आधार कार्ड नहीं होने से उन्हें स्ट्रीट वेंडर के लिए बनाई गई योजनाओं का कोई फायदा नहीं मिल रहा है।
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